किवाड़ खुलने से पहले ही दिन निकल आया
बशारतें अभी सामान में पड़ी हुई थीं
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(962) Peoples Rate This
आवाज़ों में बहते बहते
यूँ तो मुसहफ़ भी उठाए गए क़समें भी मगर
सुकूत से भी सुख़न को निकाल लाता हुआ
आईने के आख़िरी इज़हार में
न थीं तो दूर कहीं ध्यान में पड़ी हुई थीं
तुझ को छुआ तो देर तक ख़ुद को ही ढूँडता रहा
जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे
सूरज निकलने शाम के ढलने में आ रहूँ
अब्र से और धूप से रिश्ता है एक सा मिरा
फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ
तुग़्यानी से डर जाता हूँ
तिरे ग़याब को मौजूद में बदलते हुए