हम अपने आप से भी हम-सुख़न न होते थे
कि सारी मुश्किलें आसान में पड़ी हुई थीं
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1165) Peoples Rate This
किसी सफ़र किसी अस्बाब से इलाक़ा नहीं
कितने ही फ़ैसले किए पर कहाँ रुक सका हूँ मैं
मेरे गिर्या से न आज़ार उठाने से हुआ
मैं जागते में कहीं बन रहा हूँ अज़-सर-ए-नौ
आवाज़ों में बहते बहते
न थीं तो दूर कहीं ध्यान में पड़ी हुई थीं
क़तरा क़तरा छत से ही रिसने लगी
यूँ तो मुसहफ़ भी उठाए गए क़समें भी मगर
हर एक साज़ को साज़िंदगाँ नहीं दरकार
आईने के आख़िरी इज़हार में
जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे