हर एक साज़ को साज़िंदगाँ नहीं दरकार
बदन को ज़र्बत-ए-मिज़राब से इलाक़ा नहीं
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
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तुग़्यानी से डर जाता हूँ
मेरे गिर्या से न आज़ार उठाने से हुआ
फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ
उन आँखों की हैरत और दबीज़ करूँ
तुझ को छुआ तो देर तक ख़ुद को ही ढूँडता रहा
आईने के आख़िरी इज़हार में
कितने ही फ़ैसले किए पर कहाँ रुक सका हूँ मैं
जब बच्चों को देखता हूँ तो सोचता हूँ
किवाड़ खुलने से पहले ही दिन निकल आया
दिनों में दिन थे शबों में शबें पड़ी हुई थीं
तिरे ग़याब को मौजूद में बदलते हुए