हम को अमरीका तो बिल्कुल रास आया ही नहीं
अपनी नाकामी पे आओ मिल के सब थू-थू करें
माल-ओ-दौलत अब भी मिल सकते हैं हम सब को मगर
लाटरी निकले हमारी या किसी पर सू करें
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शायर-ए-आज़म
लाटरी
मैं जिसे हीर समझता था वो राँझा निकला
घर से बाहर
माशूक़ जो ठिगना है तो आशिक़ भी है नाटा
जब भी तुझे देखा किसी बोहरान में देखा
मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है
सफ़र हो रेल-गाड़ी का तो छके छूट जाते हैं
कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की
सर-ए-बज़्म मुझ को उठा दिया मुझे मार मार लिटा दिया
दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे
मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है