जब भी तुझे देखा किसी बोहरान में देखा

जब भी तुझे देखा किसी बोहरान में देखा

निस्यान में देखा कभी हिज़यान में देखा

गोभी भी है गर फूल तो बस इतना बता दे

कॉलर में कभी या कभी गुल-दान में देखा

ऐसा न हो बब्बन को कोई चील उचक ले

नंगा उसे देखा कभी बनयान में देखा

बीवी ने दबा रक्खा है अब टेटुआ शायद

मैं ने जो उसे हाल-ए-परेशान में देखा

कहते हैं कि लैला का तअल्लुक़ था अरब से

ये रंग तो अफ़्रीक़ा ओ मकरान में देखा

रस गन्ने का पीने को मिला ख़ूब हमें भी

ये फ़ाएदा देखा है तो यरक़ान में देखा

पिस्तौल छुपा रक्खा था पतलून में मैं ने

कस्टम के सिपाही ने जो सामान में देखा

वो चोर था या आशिक़-ए-दिल-गीर किसी का

दीवार पे चढ़ते जिसे दालान में देखा

(1072) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jab Bhi Tujhe Dekha Kisi Bohran Mein Dekha In Hindi By Famous Poet Zia-ul-Haq Qasmi. Jab Bhi Tujhe Dekha Kisi Bohran Mein Dekha is written by Zia-ul-Haq Qasmi. Complete Poem Jab Bhi Tujhe Dekha Kisi Bohran Mein Dekha in Hindi by Zia-ul-Haq Qasmi. Download free Jab Bhi Tujhe Dekha Kisi Bohran Mein Dekha Poem for Youth in PDF. Jab Bhi Tujhe Dekha Kisi Bohran Mein Dekha is a Poem on Inspiration for young students. Share Jab Bhi Tujhe Dekha Kisi Bohran Mein Dekha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.