Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_6be0cde0756250cd28dc0aab31bf9372, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कसक - ज़िया जालंधरी कविता - Darsaal

कसक

तिरे दिल में ग़लताँ हो गर वो अनोखी कसक

कि जिस के सबब तुझ को हर शय पुकारे, कहे:

मुझे देख मेरी तरफ़ आ मुझे प्यार कर

तू लपके तो हर चीज़ तुझ से खिंचे दूर दूर

तिरे दिल में हो मौज-दर-मौज इक सैल-ए-दर्द

मगर तू न समझे कशिश क्या है दूरी है क्यूँ

फ़क़त वो अनोखी ख़लिश दिल में ग़लताँ रहे

हवाओं के हाथों में बेताब मौजों के दफ़

हुआ तेशा-ज़न सब्ज़ सय्याल बिल्लोर पर

हवा से धड़कते समुंदर के साहिल पे कफ़

ये आमेज़िश-ए-हुस्न-ओ-ख़ौफ़ आरज़ू ओ फ़रार

तिरे दिल में ग़लताँ रहे वो अनोखी कसक

तफ़ावुत कभी नित बदलती उमंगों में देख

तफ़ावुत कभी लहके सब्ज़े के रंगों में देख

कहीं ताज़ा कोंपल में सब्ज़े की हल्की झलक

कहीं टहनी टहनी बदलता है पत्तों का अक्स

कभी धूप में निखरा निखरा है रंगों का रूप

कभी छाँव में शाम के साए में अब्र में

सभी रंग कुछ और भी गहरे होते हुए

तफ़ावुत से जिन की तिरी आँख हैराँ रहे

ये हैरत कशिश है कशिश में अनोखी कसक

तिरी फ़हम की दस्तरस से मगर दूर दूर

ये मीठी रसीली अनोखी कसक ज़ीस्त है

(1356) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kasak In Hindi By Famous Poet Zia Jalandhari. Kasak is written by Zia Jalandhari. Complete Poem Kasak in Hindi by Zia Jalandhari. Download free Kasak Poem for Youth in PDF. Kasak is a Poem on Inspiration for young students. Share Kasak with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.