दे गया दर्द-ए-बे-तलब कोई
दे गया दर्द-ए-बे-तलब कोई
मेरा हमदर्द था अजब कोई
कौन निकला है अपनी उलझन से
और को पा सका है कब कोई
ये उजाला ये दिन कहाँ हूँ मैं
मुझ से कुछ कह रहा था शब कोई
अब जो रूठे तो जाँ पे बनती है
ख़ुश हुआ मुझ से बे-सबब कोई
मेरी मंज़िल मुझे नहीं मालूम
सुब्ह कोई है और शब कोई
मौत और आरज़ू की मौत 'ज़िया'
हाँ बहुत मुतमइन है अब कोई
(1427) Peoples Rate This