छेड़ी भी जो रस्म-ओ-राह की बात
वो सुन न सके निगाह की बात
हर-लहज़ा बदल रहे हैं हालात
मुझ से न करो निबाह की बात
कहते हैं तिरी मिज़ा के तारे
ख़ुद मेरी शब-ए-सियाह की बात
अब है वो निगह न वो तबस्सुम
कुछ और थी गाह गाह की बात
क्या याद न आएगा ये अंजाम
किस दिल से करेंगे चाह की बात