आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है
आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है
कोई तो दिल की बातें छेड़ो यारो महफ़िल-ए-याराँ है
मेरे हर आदर्श का आलम अब तो आलम-ए-वीराँ है
दिल में तेरी तमन्ना जैसे मौज-ए-रेग-ए-बयाबाँ है
पाँव थकन से चूर हैं लेकिन दिल में शोला-ए-इम्काँ है
मेरे लिए इक कर्ब-ए-मुसलसल तेरा जमाल-ए-गुरेज़ाँ है
मुझ से मिलने के ख़्वाहाँ हो मिल कर रोने से हासिल
फिर वो आग भड़क उट्ठेगी अब जो राख में पिन्हाँ है
ऐन-ख़िज़ाँ में हवा ने शायद नाम लिया है बहारों का
टहनी टहनी काँप उट्ठी है पत्ता पत्ता लर्ज़ां है
आ तो गए हैं आने वाले कैसे इस्तिक़बाल करें
अब वो आबादी सूनी है अब वो घरौंदा वीराँ है
तेरे दुख को पा कर हम तो अपना दुख भी भूल गए
किस को ख़बर थी तेरी ख़मोशी तह-दर-तह इक तूफ़ाँ है
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