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ज़िया जालंधरी Ghazal In Hindi - Best ज़िया जालंधरी Ghazal Shayari & Poems - Page 1 - Darsaal

Ghazals of Zia Jalandhari (page 1)

Ghazals of Zia Jalandhari (page 1)
नामज़िया जालंधरी
अंग्रेज़ी नामZia Jalandhari
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि2012
जन्म स्थानIslamabad

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

सोज़-ए-दिल भी नहीं सुकूँ भी है

शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

रास्ते तीरा सही सीने तो बे-नूर नहीं

रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए

निगाहों में ये क्या फ़रमा गई हो

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

कुछ और पिला नशात की मय

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

कहाँ का सब्र सौ सौ बार दीवानों के दिल टूटे

जी रहा हूँ प क्या यूँही जीता रहूँ

जब उन्ही को न सुना पाए ग़म-ए-जाँ अपना

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

फ़ज़ाएँ इस क़दर बे-कल रही हैं

इक ख़्वाब था आँखों में जो अब अश्क-ए-सहर है

दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

दे गया दर्द-ए-बे-तलब कोई

छेड़ी भी जो रस्म-ओ-राह की बात

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