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Zia Jalandhari Poetry In Hindi - Best Zia Jalandhari Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Page 3 - Darsaal

ज़िया जालंधरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़िया जालंधरी (page 3)

ज़िया जालंधरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़िया जालंधरी (page 3)
नामज़िया जालंधरी
अंग्रेज़ी नामZia Jalandhari
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि2012
जन्म स्थानIslamabad

रंग बातें करें और बातों से ख़ुश्बू आए

निगाहों में ये क्या फ़रमा गई हो

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

कुछ और पिला नशात की मय

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ख़ून के दरिया बह जाते हैं ख़ैर और ख़ैर के बीच

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

कहाँ का सब्र सौ सौ बार दीवानों के दिल टूटे

जी रहा हूँ प क्या यूँही जीता रहूँ

जब उन्ही को न सुना पाए ग़म-ए-जाँ अपना

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

फ़ज़ाएँ इस क़दर बे-कल रही हैं

इक ख़्वाब था आँखों में जो अब अश्क-ए-सहर है

दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा

दिल ही दिल में सुलग के बुझे हम और सहे ग़म दूर ही दूर

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

दे गया दर्द-ए-बे-तलब कोई

छेड़ी भी जो रस्म-ओ-राह की बात

चाँद ही निकला न बादल ही छमा-छम बरसा

अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा

अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

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