लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ग़र्क़ाब सफ़ीनों के सिसकने की सदा हूँ

इक ख़ाक-ब-सर बर्ग हूँ टहनी से जुदा हूँ

जो़ड़ेगा मुझे कौन कि मैं टूट गया हूँ

अब भी मुझे अपनाए न दुनिया तो करूँ क्या

माहौल से पैमान-ए-वफ़ा बाँध रहा हूँ

मुस्तक़बिल-ए-बुत-ख़ाना का हाफ़िज़ है ख़ुदा ही

हर बुत को ये दावा है कि अब मैं ही ख़ुदा हूँ

अफ़्कार-ए-दो-आलम न झिंझोड़ें मुझे इस वक़्त

अपने ही ख़यालात की दलदल में फँसा हूँ

मंज़िल का तो इरफ़ान नहीं इतनी ख़बर है

जिस सम्त से आया था उसी सम्त चला हूँ

मुद्दत हुई गुज़रा था इधर से मिरा साया

कब से यूँही फ़ुट-पाथ पे ख़ामोश पड़ा हूँ

हूँ आप का बस मुझ को है इतना ही ग़नीमत

इस से कोई मतलब नहीं अच्छा कि बुरा हूँ

पहनाओ मिरे पाँव में ज़ंजीर-ए-बू-ए-गुल

आवारा चमन में सिफ़त-ए-बाद-ए-सबा हूँ

छेड़ो न मुझे जान-ए-'ज़िय' फ़स्ल-ए-जुनूँ में

क्या मैं भी कोई नग़्मा-ए-अंदोह-रुबा हूँ

(1777) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Lo Aaj Samundar Ke Kinare Pe KhaDa Hun In Hindi By Famous Poet Zia Fatehabadi. Lo Aaj Samundar Ke Kinare Pe KhaDa Hun is written by Zia Fatehabadi. Complete Poem Lo Aaj Samundar Ke Kinare Pe KhaDa Hun in Hindi by Zia Fatehabadi. Download free Lo Aaj Samundar Ke Kinare Pe KhaDa Hun Poem for Youth in PDF. Lo Aaj Samundar Ke Kinare Pe KhaDa Hun is a Poem on Inspiration for young students. Share Lo Aaj Samundar Ke Kinare Pe KhaDa Hun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.