मुलाएम गर्म समझौते की चादर
ये चादर मैं ने बरसों में बुनी है
कहीं भी सच के गुल-बूटे नहीं हैं
किसी भी झूट का टाँका नहीं है
इसी से मैं भी तन ढक लूँगी अपना
इसी से तुम भी आसूदा रहोगे!
न ख़ुश होगे न पज़मुर्दा रहोगे
इसी को तान कर बन जाएगा घर
बिछा लेंगे तो खिल उट्ठेगा आँगन
उठा लेंगे तो गिर जाएगी चिलमन