Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_240a9d79c1a868034b7bc6e09f2f625b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
माज़ी और हाल - ज़ेहरा निगाह कविता - Darsaal

माज़ी और हाल

माज़ी

दो बच्चे अपने कमरे से

तारों वाले कपड़े पहने

मेरे कमरे में आते हैं

मुझ से लिपट कर सो जाते हैं

और मेरी बे-ख़्वाब आँखों में

नींद की ठंडक भर जाती है

हाल

घर की बीवी

अपनी आया से कहती है

रात गए मिरे दोनों बच्चे

क्यूँ मेरे कमरे में आते हैं?

मुझ से लिपट कर सो जाते हैं

तुम आख़िर काहे के लिए हो?

मेरी ख़्वाब-आलूद आँखों से

सारी नींद बिखर जाती है

(1038) Peoples Rate This

Related Poetry

Your Thoughts and Comments

Mazi Aur Haal In Hindi By Famous Poet Zehra Nigaah. Mazi Aur Haal is written by Zehra Nigaah. Complete Poem Mazi Aur Haal in Hindi by Zehra Nigaah. Download free Mazi Aur Haal Poem for Youth in PDF. Mazi Aur Haal is a Poem on Inspiration for young students. Share Mazi Aur Haal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.