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एक सच्ची अम्माँ की कहानी - ज़ेहरा निगाह कविता - Darsaal

एक सच्ची अम्माँ की कहानी

मिरे बच्चे ये कहते हैं

''तुम आती हो तो घर में रौनक़ें ख़ुशबुएँ आती हैं

ये जन्नत जो मिली है सब उन्हीं क़दमों की बरकत है

हमारे वास्ते रखना तुम्हारा इक सआदत है''

बड़ी मुश्किल से मैं दामन छुड़ा कर लौट आई हूँ

वो आँसू और वो ग़मगीन चेहरे याद आते हैं

अभी मत जाओ रुक जाओ ये जुमले सताते हैं

मैं ये सारी कहानी आने वालों को सुनाती हूँ

मिरे लहजे से लिपटा झूट सब पहचान जाते हैं

बहुत तहज़ीब वाले लोग हैं सब मान जाते हैं

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