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बुलावा - ज़ेहरा निगाह कविता - Darsaal

बुलावा

चलो उस कोह पर अब हम भी चढ़ जाएँ

जहाँ पर जा के फिर कोई भी वापस नहीं आता

सुना है इक निदा-ए-अजनबी बाहोँ को फैलाए

जो आए उस का इस्तिक़बाल करती है

उसे तारीकियों में ले के आख़िर डूब जाती है

यही वो रास्ता है जिस जगह साया नहीं जाता

जहाँ पर जा के फिर कोई कभी वापस नहीं आता

जो सच पूछो तो हम तुम ज़िंदगी भर हारते आए

हमेशा बे-यक़ीनी के ख़तर से काँपते आए

हमेशा ख़ौफ़ के पैराहनों से अपने पैकर ढाँपते आए

हमेशा दूसरों के साए में इक दूसरे को चाहते आए

बुरा क्या है अगर उस कोह के दामन में छुप जाएँ

जहाँ पर जा के फिर कोई कभी वापस नहीं आता

कहाँ तक अपने बोसीदा बदन महफ़ूज़ रक्खेंगे

किसी के नाख़ुनों ही का मुक़द्दर जाग लेने दो

कहाँ तक साँस की डोरी से रिश्ते झूट के बाँधें

किसी के पंजा-ए-बे-दर्द ही से टूट जाने दो

फिर इस के ब'अद तो बस इक सुकूत-ए-मुस्तक़िल होगा

न कोई सुर्ख़-रू होगा, न कोई मुन्फ़इल होगा

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Bulawa In Hindi By Famous Poet Zehra Nigaah. Bulawa is written by Zehra Nigaah. Complete Poem Bulawa in Hindi by Zehra Nigaah. Download free Bulawa Poem for Youth in PDF. Bulawa is a Poem on Inspiration for young students. Share Bulawa with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.