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नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा - ज़ेहरा निगाह कविता - Darsaal

नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा

नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा

रफ़्ता रफ़्ता नज़र आना भी तुम्ही से सीखा

तुम से हासिल हुआ इक गहरे समुंदर का सुकूत

और हर मौज से लड़ना भी तुम्ही से सीखा

अच्छे शेरों की परख तुम ने ही सिखलाई मुझे

अपने अंदाज़ से कहना भी तुम्ही से सीखा

तुम ने समझाए मिरी सोच को आदाब अदब

लफ़्ज़ ओ मअनी से उलझना भी तुम्ही से सीखा

रिश्ता-ए-नाज़ को जाना भी तो तुम से जाना

जामा-ए-फ़ख़्र पहनना भी तुम्ही से सीखा

छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था

पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा

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