तेरे होंट बहुत हसीन हैं
कम गुल-ओ-लाला से नहीं
तेरे दहकते रुख़्सार
तेरी गहरी काली ग़ज़ाली आँखें
तेरा सीमीं बदन
किसी मंदिर में रखी
दुर्गा की मूरत सा है
तेरा लहजा कोयल की कूक सा
मीठा इतना के शहद-आगीं
तेरी कमर में कमान सा ख़म
फिर क्यूँ ख़ुद को छुपा रखती हो
इतना किस लिए सँभाल रखती हो