इय्याक-ना'बोदो व इय्याक-नस्तई'न

सोचती हूँ

जलते बुझते खे़मे थे

तिश्नगी की शिद्दत से

छोटे छोटे बच्चों के बंद होती आँखें थीं

अश्क़िया का नर्ग़ा था

फ़त्ह के नक़्क़ारे थे

बे-हया इशारे थे

बीबियों के बैनों में

शाम के धुँदलके में

सज्दा-गह पे सर रख कर

आबिदों की ज़ीनत ने

हम्द जब किया होगा

अर्श हिल गया होगा

सज्दा रो पड़ा होगा

सज्दा रो पड़ा होगा

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