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बॉर्डर-लाइन - ज़ेहरा अलवी कविता - Darsaal

बॉर्डर-लाइन

नई नस्लों के सच्चे लोग

हमारी बातों पे हंस रहे हैं

हमारे मुल्कों की सरहदों को

बड़ी ही हैरत से तक रहे हैं

वो कह रहे हैं

कैसे ये अजीब लोग थे

जिन्हों ने नस्लें की नस्लें

लकीरों पर रगेद डालीं

जवानियाँ लड़ाईयों में पसीज डालीं

अपने ख़ून बहाने वाले ये कैसे लोग थे

आने वाली नई नस्लें ये जान लेंगी

मान लेंगी

कि बॉर्डर के उस तरफ़ भी और इस तरफ़

भी लोग बस्ते हैं

के जिन के लहू का रंग एक है

वो सुर्ख़ है

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