अद्ल का फ़ुक़्दान
क़ातिल-ओ-मक़्तूल बराबर
ज़ालिम-ओ-मज़लूम बराबर
क़लम भी बंदूक़ बराबर
मा'तूब-ओ-महबूब बराबर
अपनी गोया साथी की
हर इक ख़ातून बराबर
नई दानिश्वरी जो पढ़ी
मूसा-ओ-क़ारून बराबर
ज़ुल्म तो सब पर साँझा था
बनी-इसराईल-ओ-फ़िरऔन बराबर
माँ चाहे रोती रहे
शहीद बच्चे और मलऊन बराबर
बलोच जो घर से ग़ाएब हैं
सब पर मगर क़ानून बराबर
ज़ुल्म की अंधी फ़िक्र में
यज़ीद-ओ-हुसैन बराबर
नई नई पढ़ी सहाफ़त
मशअ'ल-ओ-हुजूम बराबर
अंधेरा भी उजाले सा है
ज़ुल्मत-ओ-नूर बराबर
बसीरत पर पर्दा पड़ा
सच और हर इक झूट बराबर
उल्टी गंगा बहती है
मदारी-ओ-अफ़लातून बराबर
जब तक अपना न बहे
आब-ओ-ख़ून बराबर
इक उन का भी मार गिराओ
फिर कहना मारने वाला और मरहूम बराबर
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