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यादें - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

यादें

ख़ामोशी और फूलों को मत तोड़ो

वर्ना बहुत सी बातों से भरी हुई ये रात

ज़िंदगी से ख़ाली हो जाएगी

हमारी सुब्हें इस अँधेरे में छुपी हैं

उन्हें मत ढूँडो

वो रात में बोलने वाले झींगुरों की तरह होती हैं

जो ख़ामोश हो जाने पर नहीं मिलते

मैं ने अपने हीरे

ज़मीन के जिस हिस्से में छुपाए थे

वहाँ कोई बादल भी नहीं था

और मुझे याद आता है

उन दिनों मेरी हर चीज़ बर्फ़ से बनी होती थी

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