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शाइरों - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

शाइरों

वा'दा करो शाइरों

अगली जंग-ए-अज़ीम शुरूअ' होने से पहले

तुम हमारे घोड़ों के पीछे पीछे भागना

और हमारी तलवारों को उठाना सीख जाओगे

धात से बनी चीज़ों को

चमकाने वाली पॉलिश के मर्तबान

हम तुम्हारे घर पहुँचा देंगे

और तुम ज़िंदगी भर

हमारी टोपियों और तमग़ों को

आसमानी चमक देते रहोगे

अपने दिल पर हाथ रख कर

सच्चे दिल से हलफ़ उठाओ शाएर

कि हमारे जंगी तय्यारों और मीज़ाईलों के सिवा

किसी की तारीफ़ नहीं करोगे

हमारी बन्दूक़ों और टैंकों की नालों में

किसी को फूल नहीं रखने दोगे

हमारी तोपों और जूतों की धमक के सिवा

कोई और आवाज़ नहीं सुनोगे

अगली जंग-ए-अज़ीम का एलान

हमारे साथ लिखो शाइरों

जंगी तरानों के बोल

हमारे साथ दोहराओ शाइरों

जब जंग शुरूअ' होगी

हमारी तलवारें हमें दे देना

जब दुश्मन हमला करेगा

हम अपने घोड़ों पर सवार

पीछे की तरफ़ दौड़ेंगे

शाइरों

मरने के लिए तय्यार रहना

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