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शाइर - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

शाइर

अगर मुझे अकेला नहीं देख सकते

तो रहने दो इसी तरह उदास

ये तो मत कहो

कि हमारे कमरे में रक्खी हुई

सब से आख़िरी कुर्सी पर बैठ जाओ

या हमारे जूतों के पास

खड़े हो कर मुस्कुराते रहो

या पुराना फर्निचर चमकाने वाली पॉलिश के लिए एक नई नज़्म लिख दो

मैं वा'दा करता हूँ

कि किसी बादल किसी फूल

किसी हवा किसी सितारे

या फिर किसी ख़ामोशी में

जहाँ भी जगह मिलेगी

बैठ जाऊँगा

या इस कमरे से बाहर जा कर

बारिश में खड़ा रहूँगा

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