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शायर और मसख़रे - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

शायर और मसख़रे

हमारे यहाँ आम तौर पर

हर मौक़े पर

शायर और मसख़रे

एक जैसी कुर्सियों पर बैठते हैं

और कुर्सियों तक आने के लिए

एक ही रास्ते से गुज़रते हैं

और इस रास्ते से पहले

एक ही ज़ीने उपर चढ़ते हैं

शायर और मसख़रे साथ साथ चलते हैं

चलते चलते मसख़रा ज़ोर ज़ोर से हँसता है

शायर रोता है और हम

दोनों की आवाज़ें साथ साथ सुनते हैं

और भूल जाते हैं ध्यान ही नहीं देते

इस बात पर कि इन में से

शायर की आवाज़ कौन सी है और मसख़रे की कौन सी

और इस बात पर कि हमें

मसख़रे की हँसी पर तवज्जोह देनी चाहिए

या शायर के आँसुओं पर

और इस बात पर कि हमें

शाइरों मसख़रों और कुर्सियों में

कोई फ़र्क़ महसूस नहीं होता

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Shaer Aur MasKHare In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. Shaer Aur MasKHare is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem Shaer Aur MasKHare in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free Shaer Aur MasKHare Poem for Youth in PDF. Shaer Aur MasKHare is a Poem on Inspiration for young students. Share Shaer Aur MasKHare with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.