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सय्याह - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

सय्याह

उसे सफ़र नामे

और सय्याहों की ज़िंदगी की कहानियाँ बहुत पसंद थीं

उस ने मुख़्तलिफ़ मुल्कों

और वहाँ के लोगों के बारे में बहुत कुछ मालूम क्या था

वो कई ज़बानें

और सफ़र करने के तमाम तरीक़े जानता था

और वो ये भी जानता था

कि जब कोई शख़्स कहीं न जा सके

तो उसे क्या करना चाहिए

वो ख़्वाब देखता था

और हर रात ख़ुद को किसी नई सर-ज़मीन पे पाता

वो ख़्वाब देखता था

जो इन्हें चीज़ों के बारे में होते

लोग उस के ख़्वाब दिलचस्पी से सुनते थे

फिर एक रात उस ने देखा

कि वो रास्ता भूल गया है

और उस ने ख़ुद को कभी गर्म रेत

और कभी दूर तक फैली बर्फ़ में धँसा हुआ पाया

अगली सुब्ह उस ने किसी से कुछ नहीं कहा

और उन रियासतों की तरफ़ निकल गया

जिन पर कहीं न जाने वाले लोग चले ही जाते हैं

नए या पुराने नक़्शों में

ऐसे बहुत से रास्ते दिखाए जाते हैं

जो कहीं नहीं जाते

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