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क़तरे - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

क़तरे

हमें कौन बचाएगा

अगर कभी हमारी जेबें

ख़ाली कराने की कोशिश की गई

अगर कभी हमारी उँगलियों के दरमियान

पेंसिल रख कर और उन्हें दबा दबा कर

कुछ पूछने की ज़रूरत महसूस होती

तो हम क्या बताएँगे

यही कि हम ने कभी चंद खोटे सिक्कों

चमड़े में छुपे ता'वीज़

और खजूर की गुठलियों के सिवा

ज़मीन में कुछ नहीं दबाया

या ये कि हमारी अलमारी के ख़ानों में

मंसूख़-शुदा पासपोर्ट

चंद ख़ानदानी एलबमों

और अक़ीक़ की अंगूठियों के सिवा

कुछ मौजूद नहीं

मगर ये हमारा ख़याल है सिर्फ़ ख़याल

हमें कुछ नहीं होगा

और अगर कुछ हुआ

तो हमारे दोस्त दरख़्त हमें

अपने साए में ले लेंगे

जिन बादलों की तश्कील में

हमारे आँसू शामिल हैं

हमें साथ ले जाएँगे

और नीचे नहीं गिरने दें

अगर कभी बे-ध्यानी के आलम में

हम नीचे शहर में गिरे भी

तो हमारी जेबों से

छोटे छोटे सितारों बेर बहूटियों

और बारिश के क़तरों के सिवा

कुछ बरामद न होगा

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In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.