नज़्म
इक सुब्ह जब बहार थी कमरे में मेज़ पे
फूलों के रंग चाय की ख़ुश्बू से तेज़ थे
खिड़की से आ रही थी किसी गीत की सदा
ठहरी हुई थी नींद में डूबी हुई हवा
रक्खे हुए थे तकिए के नीचे तुम्हारे ख़्वाब
पंछी अभी उड़े न थे शाख़ों पे बोल के
देखा न था किसी ने भी अख़बार खोल के
जिस में तुम्हारे बारे में कोई ख़बर न थी
तुम दूर इक नद्दी के किनारे के पास थीं
वादी में एक सब्ज़ सितारे के पास थीं
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