नज़्म
सूरज की इक किरन जब
शबनम से कोंपलों पर मोती बना रही थी
पत्तों में छुप के बैठी
एक बे-ध्यान चिड़िया कुछ गुनगुना रही थी
ठंडी हवा सड़क पर
कॉलेज की लड़कियों के
हम-राह जा रही थी
बे-ताब इक गिलहरी
बादाम का शगूफ़ा
शायद छुपा रही थी
गुज़री हुई मोहब्बत
बारिश के साथ मिल के
बौछार बन गई थी
जब हम वहाँ नहीं थे
खिड़की के सामने इक
दीवार बन गई थी
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