नज़्म
तुम ने किताब खोल के देखी नहीं अभी
इस में तुम्हारे बारे में इक और नज़्म है
इस नज़्म में सफ़ेद गुलाबों का ज़िक्र है
आँखों में क़ैद रेशमी ख़्वाबों का ज़िक्र है
ऐ दिल हर एक बार ये ख़्वाबों की बात क्यूँ
तकिए के पास बंद किताबों की बात क्यूँ
हर रात आसमाँ पे सितारों से बात कर
दरिया को तो न छेड़ किनारों से बात कर
करता है कौन रोज़ सितारों से गुफ़्तुगू
होगी नहीं ख़िज़ाँ में बहारों से गुफ़्तुगू
कुछ देर उस की याद में ख़ामोश रह के देख
जिस ने किताब खोल के देखी नहीं अभी
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