नज़्म
जब सितारे कहीं नहीं होते
आसमाँ बादलों की चादर में
देर तक महव-ए-ख़्वाब रहता है
ऐसा लगता है खो गया सब कुछ
कोई दरिया डुबो गया सब कुछ
धूप खिड़की से आ नहीं पाती
सामने रहने वाली चीज़ों को
हम अचानक छुपाने लगते हैं
ख़त्म होती हुई मोहब्बत को
अपने दिल में समोने लगते हैं
ज़िंदगी की पुरानी रोटी को
आँसुओं से भिगोने लगते हैं
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