नज़्म
मैं ने इक ख़्वाब इक लिफ़ाफ़े में
तुम्हें सब से छुपा के भेजा था
उस के हम-राह एक काग़ज़ पर
किसी बादल का सुरमई टुकड़ा
सुर्ख़ फूलों के साथ रक्खा था
वो तुम्हें क्यूँ नज़र नहीं आया
अपने कमरे की बंद खिड़की से
तुम सितारों को देख लेती हो
तेज़ बारिश में इक समुंदर के
उन किनारों को देख लेती हो
जो किसी को नज़र नहीं आते
जो कभी अपने घर नहीं जाते
उन परिंदों को याद करती हो
वो भी इक ख़्वाब देख सकते हैं
ये तुम्हें क्यूँ नहीं बताया गया
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