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लोग - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

लोग

कुछ लोग भागते हुए मारे गए

और कुछ पैदल चलते हुए

काम पर जाने वालों का रुख़ घर की तरफ़ हो गया

और घर जाने वाले

क़ब्रिस्तान पहुँच गए

दीवार के पीछे छुपे हुए लोग भी मारे गए

और अपने घर का दरवाज़ा बंद करने वाले भी

छत पर सोए हुए लोग भी ख़त्म हुए

खिड़कियों से झाँकते हुए भी

हर सड़क पर मौत चल रही थी

और हर दीवार पर

उस के हाथों के निशान मौजूद थे

कपड़े को पानी में डुबो कर जो लोग

दीवारें साफ़ कर रहे थे

वो भी आख़िर में मारे गए

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