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कल - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

कल

गुज़रे हुए कल और

आज के बारे में

हम बहुत कुछ कह सकते हैं

कल हम एक सूरज थे

और आज महज़ एक तुफ़ैली चाँद

कल हम एक दरख़्त थे

और आज उस की लकड़ी से बनी

एक संग-दिल कुल्हाड़ी

कल हम एक रंग-बिरंगी कश्ती थे

और आज समुंदर की तह में

केकड़ों और घोंघों का

नीम तारीक ठिकाना

मगर इस तरह की बातें

क्या इस एक बात की शिद्दत को कम कर सकती हैं

जिसे हम सुनना नहीं चाहते

कल हम एक तवाना जिस्म थे

और आज एक सूखती हुई लाश

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