कहानी
मैं ने एक कहानी सोची है
मैं उसे कभी नहीं लिखूँगा
लिखी हुई कहानियाँ पढ़ कर
लोग बहुत सी बातें फ़र्ज़ कर लेते हैं
और फ़र्ज़ी कहानियाँ लिखनी शुरूअ कर देते हैं
मैं ने ये कहानी उस से पहले किसी से नहीं सुनी
कहीं पढ़ी नहीं और फ़र्ज़ भी नहीं की
उस के किरदार कहानी शुरूअ होने से पहले
या शायद ब'अद में मर चुके हैं
वो एक दूसरे से कभी नहीं मिले
या शायद हमेशा साथ रहे हैं
मैं उन के बारे में यक़ीन से कुछ नहीं कह सकता
ग़ैर-फ़र्ज़ी कहानियों के बारे में
कोई भी यक़ीन से कुछ नहीं कह सकता
उन में सब कुछ ख़ुदा की तरह ग़ैर-यक़ीनी
मौत की तरह अचानक
और कभी कभी मोहब्बत की तरह ख़ूब-सूरत और ग़ैर-मुतवक़्क़े होता है
उस कहानी की कहानी यूँ शुरूअ
मगर ऐसी कहानियाँ किसी को सुनाई नहीं जातीं
वर्ना लोग ख़ुद को उन का किरदार समझने लगते हैं
या शायद ऐसा होता भी है
ये कहानी मेरे पास दुश्मन की कमज़ोरियों के राज़
और ताश के खेल में तुरुप के पत्तों की तरह है
मैं इसे कभी नहीं लिखूँगा
इसे किसी को नहीं सुनाऊँगा
इस के किरदारों और ख़ुद को भी नहीं
अपने दोस्तों और उस लड़की को भी नहीं
जिस के लिए मैं ने एक कहानी सोची है
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