Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_3b953bfc5fe7f689a1f80d70858402c4, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जनरल-साहिब की नाक - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

जनरल-साहिब की नाक

जनरल-साहिब

रोज़ाना सुब्ह-सवेरे

ठंडे पानी से नहाते हैं

और तय्यार होने लगते हैं

वर्दी पहन कर

वो सीधे लॉन में जाते हैं

ताज़ा हवा और खिले हुए फूल

उन्हें बहुत पसंद है

वो दिन बहुत ख़राब गुज़रता है

जब सोला जवान

चार नाएब सूबे-दार और दो कप्तान

कोर्ट-मार्शल के

अहकामात सुनते हैं

और माली की भी

जाँ-बख़्शी नहीं होती

उस दिन जनरल-साहिब

एक कली को अपने जूते के नीचे

ये कह के कुचल देते हैं:

उस में कोई ख़ुशबू नहीं

हमें ब'अद में मालूम होता है

जनरल-साहिब की नाक

एक अर्से बंद थी

(921) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jeneral-sahib Ki Nak In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. Jeneral-sahib Ki Nak is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem Jeneral-sahib Ki Nak in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free Jeneral-sahib Ki Nak Poem for Youth in PDF. Jeneral-sahib Ki Nak is a Poem on Inspiration for young students. Share Jeneral-sahib Ki Nak with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.