एक मंज़र की ख़ामोशी
बहुत दूर
शहर से बाहर
शायद किसी और शहर में
एक कमरा है
उस की सारी खिड़कियाँ
सुब्ह से खुली हुई हैं
कोई नहीं है जो उन्हें बंद कर दे
या उस गर्द को साफ़ कर दे
जो दीवार पर लगे पोर्ट्रेट को
धुँदला कर रही है
हवा ने गुज़रते हुए
काग़ज़ों को पीला कर दिया
लोहे की कुर्सी पर बैठ के
अब कोई किसी को याद नहीं करता
रात गए सुनाई देने वाली
ट्रेन की आवाज़ नहीं सुनता
शायद जाते जाते मेज़ पर
किसी ने डिक्शनेरी को खोल कर रख दिया है
सारे लफ़्ज़ों को कमरे में बिखेर दिया है
बहुत जल्द ये भी चले जाएँगे
कमरे में आती जाती चिड़िया के साथ
अब वहाँ सिर्फ़ चिड़िया है
एक मंज़र की ख़ामोशी को
कभी कभी ख़त्म करने
या हमेशा बाक़ी रखने के लिए
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