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छोटी सी बच्ची - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

छोटी सी बच्ची

मैं नज़्म लिखता हूँ

छोटी सी बच्ची मुझे देखती है

और मेरे पास बैठ जाती है

मैं लिखता रहता हूँ

वो तकिए पर अपने बालों भरे बंदर को सुलाने लगती है

वो अपने छोटे से हाथी को

हाथों में ले कर उस से बातें करती हैं

बाहर से फायरिंग की आवाज़ आती है

मैं उस से पूछता हूँ

डर तो नहीं लग रहा?

नहीं वो बहुत आसानी से जवाब देती है

और अपना हाथी मुझे दे देती है

जहाँ शीशे के दो चमकदार बैज़वी टुकड़ों में

छोटी सी बच्ची का अक्स

हमेशा झिलमिलाता रहता है

मैं नज़्म लिखता रहता हूँ

खेलते खेलते अचानक

वो मुझ से पूछती है

'ज़ीशान', क्या तुम्हें भी

बहुत सारा होम-वर्क मिला है?

हाँ, बहुत सारा

मैं कहता हूँ

और उस के हाथी से खेलने लगता हूँ

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