छोटी सी बच्ची
मैं नज़्म लिखता हूँ
छोटी सी बच्ची मुझे देखती है
और मेरे पास बैठ जाती है
मैं लिखता रहता हूँ
वो तकिए पर अपने बालों भरे बंदर को सुलाने लगती है
वो अपने छोटे से हाथी को
हाथों में ले कर उस से बातें करती हैं
बाहर से फायरिंग की आवाज़ आती है
मैं उस से पूछता हूँ
डर तो नहीं लग रहा?
नहीं वो बहुत आसानी से जवाब देती है
और अपना हाथी मुझे दे देती है
जहाँ शीशे के दो चमकदार बैज़वी टुकड़ों में
छोटी सी बच्ची का अक्स
हमेशा झिलमिलाता रहता है
मैं नज़्म लिखता रहता हूँ
खेलते खेलते अचानक
वो मुझ से पूछती है
'ज़ीशान', क्या तुम्हें भी
बहुत सारा होम-वर्क मिला है?
हाँ, बहुत सारा
मैं कहता हूँ
और उस के हाथी से खेलने लगता हूँ
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