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बच्चों की साइकल - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

बच्चों की साइकल

बच्चों की साइकल

मैदान-ए-जंग में

किसी काम नहीं आती

टैंक को आता देख के

डर के मारे चल नहीं पाती

घंटी नहीं बजाती

एक जगह जम जाती है

इतनी छोटी हो जाती है

कि टैंक को नज़र नहीं आती

जब टैंक अपना रास्ता बनाते हुए

उस पे से गुज़र जाता है

तो एक हल्की सी आवाज़

हर तरफ़ फैल जाती है

एक छोटा सा धब्बा

ज़मीन पे नुमूदार हो जाता है

टैंक आगे बढ़ता है तो बहुत सी

छोटी छोटी साइकलें

टैंक को घेर लेती हैं

घंटियाँ बजा बजा के पागल कर देती हैं

भागने नहीं देतीं

डरा डरा के ख़त्म कर देती हैं

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