अवाम
मुश्किल वक़्त में
अगर कुछ लोग हमारी मदद नहीं कर रहे
तो हमें
इन के बारे में सोचना तर्क नहीं करना चाहिए
और जो लोग अपनी आवाज़ों से
अपनी मौजूदगी का एहसास दिला रहे हैं
हमें उन का भी ख़याल रखना चाहिए
बहुत ज़ियादा कस्मपुर्सी के आलम में
हमें सिर्फ़ नारे नहीं लगाने चाहिएँ
बहुत ज़ियादा बेबसी की हालत में
हमें अपनी मुट्ठियाँ
घर की दीवारों और दरवाज़ों पर
नहीं मारनी चाहिएँ
अपने साथियों के शोर
और अपनी चीख़ों से घबरा कर
हमें अपनी बातों को दोहराना बंद करना चाहिए
हमें तकरार करनी चाहिए
हर उस लफ़्ज़ की
जिस की वजह से हमारा वजूद
अभी तक बाक़ी है
हमें तकरार करनी चाहिए
हर उस ख़याल की
जिस के आते ही
बहुत से लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं
अपनी मायूसी, अपनी ना-उमीदी को
हमें एक गीत बना लेना चाहिए
और अपनी भूक और अपनी प्यास से
एक चाबुक
जिसे हाथ में ले कर
अपने ख़्वाबों की विक्टोरिया दौड़ाते हुए
हमें अपने महल में
दाख़िल हो जाना चाहिए
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