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अवाम - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

अवाम

मुश्किल वक़्त में

अगर कुछ लोग हमारी मदद नहीं कर रहे

तो हमें

इन के बारे में सोचना तर्क नहीं करना चाहिए

और जो लोग अपनी आवाज़ों से

अपनी मौजूदगी का एहसास दिला रहे हैं

हमें उन का भी ख़याल रखना चाहिए

बहुत ज़ियादा कस्मपुर्सी के आलम में

हमें सिर्फ़ नारे नहीं लगाने चाहिएँ

बहुत ज़ियादा बेबसी की हालत में

हमें अपनी मुट्ठियाँ

घर की दीवारों और दरवाज़ों पर

नहीं मारनी चाहिएँ

अपने साथियों के शोर

और अपनी चीख़ों से घबरा कर

हमें अपनी बातों को दोहराना बंद करना चाहिए

हमें तकरार करनी चाहिए

हर उस लफ़्ज़ की

जिस की वजह से हमारा वजूद

अभी तक बाक़ी है

हमें तकरार करनी चाहिए

हर उस ख़याल की

जिस के आते ही

बहुत से लोगों के रौंगटे खड़े हो जाते हैं

अपनी मायूसी, अपनी ना-उमीदी को

हमें एक गीत बना लेना चाहिए

और अपनी भूक और अपनी प्यास से

एक चाबुक

जिसे हाथ में ले कर

अपने ख़्वाबों की विक्टोरिया दौड़ाते हुए

हमें अपने महल में

दाख़िल हो जाना चाहिए

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Awam In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. Awam is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem Awam in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free Awam Poem for Youth in PDF. Awam is a Poem on Inspiration for young students. Share Awam with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.