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आँसू की वजह - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

आँसू की वजह

जब हम दरख़्त बनना चाहते हैं

और बन जाते हैं

लेकिन

हम किसी को साया नहीं दे पाते

कोई परिंदा हमारी शाख़ों पर गीत नहीं गाता

कोई गिलहरी हमारे तने में अपना घर नहीं बनाती

हमारी कोंपलों पर कभी ओस नहीं चमकती

और हज़ारों साल तक हमें दीमक नहीं लगती

जब हम रास्ता बन जाना चाहते हैं

और बन जाते हैं एक पुल

और सारी ज़िंदगी

एक ही जगह गुज़ार देते हैं

और सब हमें पार कर के ज़िंदगी भर के लिए

बिछड़ते रहते हैं

किसी ख़ाना-जंगी में हमें आग नहीं लगती

और हमारे टुकड़े दूर दूर तक

एक साथ नहीं बहते

जब हम समुंदर बनना चाहते हैं

और महज़ एक आँसू बन के

किसी रुमाल में जगह बना लेते हैं

और कोई उसे सीने से नहीं लगाता

अपनी कलाई पर नहीं बाँधता

कोई उसे जला के राख

किसी ज़ख़्म में नहीं भरता

जब हम एक कहानी बनना चाहते हैं

और सिर्फ़ एक लफ़्ज़ बन के

सर्द होंटों से अदा होते हैं

और फिर हमेशा ख़लाओं में भटकते रहते हैं

या फ़ज़ा में गूँजते रहते हैं

या शायद ये लफ़्ज़ दिल की गहराई से

कभी बाहर नहीं निकल पाता

और हमेशा के लिए

हमारी तरह

फ़रामोश कर दिया जाता है

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