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आधी ज़िंदगी - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

आधी ज़िंदगी

आसमान का एक हिस्सा मेरे देखने के लिए है

और ज़मीन का एक हिस्सा तुम्हारे चलने के लिए

सूरज तुम्हारी आँखों से निकलता और चाँद

मेरे दिल में डूब जाता है

समुंदर का शोर तुम्हारे दिल में बंद है और

दरिया की ख़ामोशी मेरी आँखों में

तुम एक कश्ती में सफ़र करती हो और मैं

उस के साथ साथ उड़ने वाले बादल में

मुझे दीवार पर बैठा हुआ सफ़ेद कबूतर अच्छा लगता है

और तुम्हें पिंजरे में क़ैद एक काली चिड़िया

जो अंधेरे में बारिश के बाद

निकलने वाली बैर-बहोटियों की तरह सुर्ख़ हो जाती है

तुम्हारा दिल ग्रेनाइट से बना एक मोर है जो अपने पैरों को देख कर रो नहीं सकता

और मेरा दिल मिट्टी में धंसी हुई एक बारूदी सुरंग

जो तुम्हें रास्ते से गुज़रता देख कर

धमाके से टुकड़े टुकड़े होना भूल जाता है

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