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9 - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

9

इक उम्र दिल के पास रहा वो मगर कहीं

जब भी मिला तो जैसे कि कुछ जानता नहीं

आँखों में इक अजीब शनासाई थी मगर

गहराइयों में दिल की पज़ीराई थी मगर

देखा कुछ इस तरह से कि पहचानता नहीं

कुछ हम से आश्नाई है ये मानता नहीं

मैं ने कहा कि तुम से मुलाक़ात है बहुत

हर रोज़ रस्म-ओ-राह-ए-मुदारात है बहुत

कहने लगा कि कोई ख़लिश है निगाह में

हाइल है फ़ासला कोई बरसों का राह में

महव-ए-सफ़र हैं और अभी हम-सफ़र नहीं

हमराह दिल के दिल है मगर रहगुज़र नहीं

ख़्वाबों में सुब्ह-ओ-शाम मिले भी अगर तो क्या

दो-चार फूल दिल में खिले भी अगर तो क्या

जो कुछ दिल-ओ-निगाह ने चाहा वो हो गया

ये सोचा दिल ने और निगाहों में खो गया

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9 In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. 9 is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem 9 in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free 9 Poem for Youth in PDF. 9 is a Poem on Inspiration for young students. Share 9 with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.