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ऐ परिंदे तू है अपनी आग में जलता हुआ
दूर से लेकिन धुआँ उठता नज़र आता नहीं
ऐसा लगता है कि हैं शोले फ़ज़ा में हर तरफ़
आसमाँ नीला मगर धुँदला नज़र आता नहीं
कुछ पता चलता नहीं ये सर्द है कि गर्म है
तेरे दिल की आग की लौ सख़्त है कि नर्म है
काटती है दिल के शीशे को ये हीरे की तरह
झिलमिलाती है समुंदर में जज़ीरे की तरह
कश्तियों के बादबाँ चलते हैं इस को देख कर
और सितारे रात भर जलते हैं इस को देख कर
फूल भी शाम-ओ-सहर डरते नहीं इस आग से
रक़्स की अपने बनाते हैं वो लय इस राग से
ऐ परिंदे मैं किसी दिन पास तेरे आऊँगा
और तिरी जलती हुई इस आग में जल जाऊँगा
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