34
ख़ुदा गर हमें इक परिंदा बनाता
जहाँ में हम इक आशियाना बनाते
किसी सब्ज़ वादी में अपना नशेमन
या सेहन-ए-चमन को ठिकाना बनाते
कभी उड़ते बादल में होता बसेरा
कभी डालते कुंज-ए-वहशत में डेरा
कभी दामन-ए-कोह होता हमारा
कभी बनता घर इक नदी का किनारा
कभी गीत गाते घटाओं के नीचे
कभी होते पागल हवाओं के पीछे
फ़ज़ाओं में हम सुब्ह से शाम करते
अँधेरे से पहले ज़मीं पर उतरते
कोई गुलिस्ताँ मुल्क होता हमारा
हम इस के लिए इक तराना बनाते
ख़ुदा गर हमें इक परिंदा बनाता
उसे हम परिंदे ख़ुदा न बनाते
(1078) Peoples Rate This