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14 - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

14

सुना है मैं ने कि अब सितारे

तुम्हारी दहलीज़ से गुज़र कर

बिखरने लगते हैं आसमाँ पर

अज़ल से आबाद इस जहाँ पर

सुना है मैं ने कि कुछ परिंदे

हवा से महरूम बादबाँ पर

तुम्हारी आँखों के सामने से

गुज़र के दिन रात बैठते हैं

गली में फ़ुट-पाथ के किनारे

सुना है कुछ फूल खिल उठे हैं

जिन्हें कोई तोड़ता नहीं है

सड़क पे कुछ ख़्वाब हैं अधूरे

जिन्हें कोई जोड़ता नहीं है

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14 In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. 14 is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem 14 in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free 14 Poem for Youth in PDF. 14 is a Poem on Inspiration for young students. Share 14 with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.