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यूँ बोली थी चिड़िया ख़ाली कमरे में - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

यूँ बोली थी चिड़िया ख़ाली कमरे में

यूँ बोली थी चिड़िया ख़ाली कमरे में

जैसे कोई नहीं था ख़ाली कमरे में

हर पल मेरा रस्ता देखा करता है

जाने किस का साया ख़ाली कमरे में

खिड़की के रस्ते से लाया करता हूँ

मैं बाहर की दुनिया ख़ाली कमरे में

हर मौसम में आते जाते रहते हैं

लोग हवा और दरिया ख़ाली कमरे में

चेहरों के जंगल से ले कर आया हूँ

सुर्ख़ गुलाब का पौदा ख़ाली कमरे में

बस्ती में हर रात निकलने वाला चाँद

उम्र हुई न उतरा ख़ाली कमरे में

तेज़ हवा में सारे कूज़े टूट गए

और फैला इक सहरा ख़ाली कमरे में

'साहिल' शहर से दूर अकेला रहता है

जैसे मैं हूँ रहता ख़ाली कमरे में

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