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इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी - ज़ीशान साहिल कविता - Darsaal

इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी

इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी

या किसी की ज़िंदगी मिट जाएगी

ख़त्म हो जाएगा जब क़िस्सा हुज़ूर

आप की हैरानगी मिट जाएगी

आप भी रोएँगे शायद ज़ार-ज़ार

फूल जैसी ये हँसी मिट जाएगी

एक दिन बुझ जाएँगे ये महर ओ माह

या नज़र की रौशनी मिट जाएगी

या फ़ना हो जाएँगी गलियाँ तिरी

या मिरी आवाज़ ही मिट जाएगी

हुस्न भी बर्बाद हो जाएगा दोस्त

और दिल की दिल-कशी मिट जाएगी

इस क़दर आबाद हो जाएँगे लोग

हसरत-ए-तामीर ही मिट जाएगी

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