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काम इतने हैं कि आराम नहीं जानते हैं - ज़ीशान साजिद कविता - Darsaal

काम इतने हैं कि आराम नहीं जानते हैं

काम इतने हैं कि आराम नहीं जानते हैं

लोग ये सब से अहम काम नहीं जानते हैं

फेसबुक पर हैं मिरे जानने वाले लाखों

मेरे हम-साए मिरा नाम नहीं जानते हैं

इश्क़ में ज़ेहन को तकलीफ़ न दी दिल की सुनी

हम उसी वास्ते अंजाम नहीं जानते हैं

हमें बस इतना पता है कि ख़ुदा होता है

हम इन अक़साम की अक़साम नहीं जानते हैं

सब ने सिगरेट की तरह मुँह से लगा ली दुनिया

है नशा इतना कि अंजाम नहीं जानते हैं

दे तो सकते हैं सभी जान ख़ुदा की ख़ातिर

पर ख़ुदावंद के अहकाम नहीं जानते हैं

मैं कि लोगों में बहुत कम ही रहा हूँ 'ज़ीशान'

इस लिए लोग मुझे आम नहीं जानते हैं

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