ऐसा है कौन जो मुझे हक़ तक रसाई दे

ऐसा है कौन जो मुझे हक़ तक रसाई दे

देखूँ जिसे भी ख़ौफ़-ज़दा सा दिखाई दे

अपने हैं शहर भर में पराया कोई नहीं

फिर भी हमारा दिल है जो तन्हा दिखाई दे

तख़सीस कोई ज़ालिम ओ मज़लूम की नहीं

कोई दुहाई दे भी तो किस की दुहाई दे

हमदर्द हों ग़यूर हों और पुर-ख़ुलूस हों

ऐ कारसाज़ बहनों को अब ऐसे भाई दे

ये ज़िंदगी है अपनी कभी ख़ुश कभी उदास

इस कश्मकश से मुझ को ख़ुदाया रिहाई दे

'ज़ेबी' अजीब दौर है ये वहशतों का दौर

साया भी अपना मौत का साया दिखाई दे

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